डॉ. रामदयाल मुंडा जी की जन्म तिथि पर श्रद्धांजलि
आज, पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर रामदयाल मुंडा जी की जन्म तिथि पर, मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा हूँ। रामदयाल मुंडा जी का झारखंड के विकास और उसकी पहचान को स्थापित करने में अद्वितीय योगदान रहा है। उन्होंने झारखंड को अग्रणी राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके क्रांतिकारी नेतृत्व ने हमारे समाज को एक नई दिशा दी।
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| डॉ. रामदयाल मुंडा जी की जन्म तिथि पर श्रद्धांजलि |
उनकी दूरदृष्टि, संघर्ष और समाज के प्रति उनकी समर्पण भावना ने झारखंड के हर व्यक्ति को प्रेरित किया है। आज, उनके विचारों को याद करते हुए, हमें उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है, ताकि हम झारखंड को और भी उज्जवल भविष्य की ओर ले जा सकें।
डॉ. रामदयाल मुंडा: एक परिचय
डॉ. रामदयाल मुंडा का जन्म 23 अगस्त 1939 को झारखंड के तमाड़ में हुआ था। एक साधारण आदिवासी परिवार में जन्मे मुंडा जी ने शिक्षा के क्षेत्र में उच्चतम शिखर तक पहुंचकर न केवल अपने समुदाय का नाम रोशन किया, बल्कि उन्होंने आदिवासी संस्कृति और उसकी धरोहर को संजोने का महान कार्य भी किया। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने वहां अध्यापन भी किया, लेकिन अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए वे झारखंड लौट आए।
झारखंड के विकास में डॉ. मुंडा का योगदान
डॉ. रामदयाल मुंडा का योगदान झारखंड के निर्माण और विकास में अप्रतिम रहा है। वे झारखंड आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे और उनकी विद्वता और नेतृत्व ने इस आंदोलन को नई दिशा दी। उन्होंने आदिवासी समाज की समस्याओं को न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी उठाया। उनका यह प्रयास था कि आदिवासी समाज अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सके।
डॉ. मुंडा ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बचाया और बढ़ावा दिया जाए। उनके प्रयासों से आदिवासी भाषा, साहित्य और कला को पहचान मिली। उन्होंने अपने जीवनकाल में आदिवासी संस्कृति पर कई पुस्तकें लिखीं और उनके संगीत के प्रति प्रेम ने उन्हें एक कुशल संगीतकार भी बना दिया। उनके द्वारा गाए गए लोकगीत आज भी झारखंड की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
सामाजिक न्याय और शिक्षा के लिए प्रयास
डॉ. मुंडा सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने हमेशा हाशिए पर पड़े समाज के लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उनके विचार और उनके संघर्ष आज भी हमारे समाज के लिए एक मार्गदर्शक हैं।
उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी अद्वितीय योगदान दिया। उनके प्रयासों से रांची विश्वविद्यालय में आदिवासी और क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना हुई। वे खुद भी इस विभाग के अध्यक्ष रहे और अनगिनत छात्रों को शिक्षा के माध्यम से जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
रामदयाल मुंडा जी की विरासत
डॉ. रामदयाल मुंडा की विरासत हमें यह सिखाती है कि अपने समाज और संस्कृति के प्रति अटूट प्रेम और संकल्प के साथ हम असंभव को भी संभव बना सकते हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सही दिशा में किया गया संघर्ष और नेतृत्व एक पूरे समाज को बदल सकता है।
आज, उनकी जन्म तिथि पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनकी शिक्षा और उनके विचारों को अपने जीवन में उतारेंगे और झारखंड को एक समृद्ध, सशक्त और विकसित राज्य बनाने के उनके सपने को साकार करेंगे।
डॉ. रामदयाल मुंडा जी को शत्-शत् नमन।


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